सैलरी अकाउंट का नियम क्या है? जानिए कर्मचारियों के लिए इससे जुड़ी अहम बातें
नई दिल्ली,
आज के दौर में जब हर व्यक्ति किसी न किसी कंपनी, संस्थान या संगठन में कार्यरत है, ऐसे में “सैलरी अकाउंट” शब्द आम हो गया है। पर क्या आप जानते हैं कि सैलरी अकाउंट सिर्फ एक सामान्य बैंक खाता नहीं होता? इसके पीछे कई नियम और शर्तें होती हैं जिनका पालन न केवल कर्मचारियों को, बल्कि नियोक्ताओं को भी करना होता है। आइए जानते हैं कि आखिर सैलरी अकाउंट क्या होता है और इससे जुड़े मुख्य नियम क्या हैं।
सैलरी अकाउंट क्या होता है?
सैलरी अकाउंट एक ऐसा बचत खाता (Saving Account) होता है जिसे विशेष रूप से वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसे आमतौर पर कंपनी और बैंक के बीच कॉरपोरेट एग्रीमेंट के आधार पर खोला जाता है। इसमें हर महीने कर्मचारी का वेतन ट्रांसफर किया जाता है और कुछ मामलों में यह जीरो बैलेंस खाता होता है, यानी इसमें न्यूनतम राशि बनाए रखने की आवश्यकता नहीं होती।
सैलरी अकाउंट से जुड़े मुख्य नियम
1. जीरो बैलेंस की सुविधा
सैलरी अकाउंट की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि इसमें न्यूनतम बैलेंस रखने की अनिवार्यता नहीं होती। अगर आप इस खाते में ₹0 बैलेंस पर भी खाता चालू रखते हैं, तो बैंक कोई चार्ज नहीं लगाता।
2. मासिक सैलरी का नियमित क्रेडिट जरूरी
इस खाते को एक्टिव बनाए रखने के लिए जरूरी है कि इसमें हर महीने वेतन ट्रांसफर हो। यदि तीन महीने तक लगातार कोई सैलरी क्रेडिट नहीं होता है, तो बैंक इसे रेगुलर सेविंग अकाउंट में बदल सकता है और फिर न्यूनतम बैलेंस की शर्त लागू हो जाती है।
3. सिर्फ कर्मचारियों के लिए
सैलरी अकाउंट सिर्फ नियमित वेतन पाने वाले कर्मचारियों के लिए होता है। फ्रीलांसर, सेल्फ-एंप्लॉयड या अस्थायी काम करने वाले व्यक्तियों को यह सुविधा नहीं मिलती।
4. कंपनी और बैंक के बीच एग्रीमेंट
किसी भी कंपनी को सैलरी अकाउंट सुविधा शुरू कराने के लिए बैंक से एक कॉरपोरेट टाई-अप करना होता है। इसके तहत बैंक उस कंपनी के सभी कर्मचारियों के लिए एक निश्चित प्रक्रिया के तहत खाते खोलता है।
5. विशेष लाभ और ऑफर्स
सैलरी अकाउंट धारकों को बैंक कई तरह के लाभ देते हैं जैसे कि फ्री डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड पर विशेष छूट, लॉकर की प्राथमिकता, ओवरड्राफ्ट सुविधा आदि। यह फायदे रेगुलर सेविंग अकाउंट से ज्यादा होते हैं।
सैलरी अकाउंट को सेविंग अकाउंट में बदलने का नियम
अगर आप नौकरी छोड़ते हैं या रिटायर हो जाते हैं, और सैलरी अकाउंट में अब नियमित वेतन नहीं आ रहा, तो बैंक इसे आम सेविंग अकाउंट में बदल देता है। यह प्रक्रिया आमतौर पर 3 महीने तक सैलरी न आने पर शुरू होती है। इसके बाद आपको न्यूनतम बैलेंस बनाए रखना पड़ता है, अन्यथा पेनल्टी लग सकती है।
क्या आप सैलरी अकाउंट बदल सकते हैं?
जी हां, अगर आप नौकरी बदलते हैं और नई कंपनी किसी अन्य बैंक से टाई-अप करती है, तो आप नया सैलरी अकाउंट खुलवा सकते हैं। पुराना खाता आप सेविंग अकाउंट के रूप में चालू रख सकते हैं या बंद भी कर सकते हैं।
नवीनतम बैंक गाइडलाइंस पर नजर
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) समय-समय पर सैलरी अकाउंट से जुड़े दिशा-निर्देशों को अपडेट करता है। वर्ष 2024 में आई गाइडलाइंस के अनुसार, बैंकों को सैलरी अकाउंट को सेविंग अकाउंट में बदलने से पहले ग्राहक को नोटिस भेजना अनिवार्य कर दिया गया है।
सैलरी अकाउंट केवल वेतन प्राप्त करने का माध्यम नहीं, बल्कि एक बैंकिंग सुविधा है जो कर्मचारियों को वित्तीय सुरक्षा, आसान लेन-देन और अतिरिक्त फायदे प्रदान करता है। अगर आप नौकरीपेशा हैं, तो आपको इससे जुड़े नियमों की जानकारी जरूर होनी चाहिए ताकि आप इस खाते का अधिकतम लाभ उठा सकें और किसी प्रकार की पेनल्टी से बच सकें।
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